शर्मा अंकल से हमारा रिश्ता ऐसा है जिसे सिर्फ महसूस किया जा सकता है .
पिछले १० सालों में जो अपनापन मिला उसको शब्दों का जामा पहनाना असंभव है .
अभी भी ऐसा लगता है की वह यहीं पर हैं , कभी भी सीढ़ियों से आते दिख जायेंगे .
पर अफ़सोस ' हाँ जी ' की वह आवाज़ अब नहीं सुनाई देगी .
दिन के हर प्रहर में ; उनका पडोसी होने की नाते मेरे परिवार का एक अघोषित दखल रहता था .
सुबह की सैर , संडे सुबह की चाय , हफ्ते में तीन से चार बार रात १० बजे वाली मुलाकात का एक तरह से नियम ही बन गया था .
अब दिल पर पत्थर रख कर स्वीकार करना पड़ेगा की एक देवता स्वरुप इंसान हमारे बीच में से सदा की लिए चला गया है .
एक निर्वात (अंग्रेजी में Vaccuum) सारे जीवन बना रहेगा . ठीक वैसा ही झकझोर देने वाला निर्वात जो पहली बार मुझे तब महसूस हुआ था जब मेरे पिता जी का २००१ में स्वर्गवास हुआ था .
दोनों घटनाओं में दुःख तो एक सरीके का है और जो सदैव दिल की गहराईयों में कहीं दबा और छुपा ही रहेगा .
पर ; जो यादें और जो खुशियां हमने साथ रह कर जुटाई हैं ; वह हम सब को सम्बल देती रहेंगी .
रेमंड फैब्रिक की पंच लाइन है ' अ परफेक्ट मैन' . शर्मा अंकल भी एक परफेक्ट मैन थे .
अनुराग की शब्दों को चुरा कर लिख रहा हूँ : ' हर उम्र का व्यक्ति २ साल से ८० साल तक ; उनका दोस्त था' .
आज वह भौतिक रूप में नहीं हैं पर हमेशा हमारी यादों में रहेंगे . और हाँ जी , आपको याद करते ही आपकी मीठी यादों की मुस्कराहट हर चेहरे पर आती रहेगी .
एक निस्वार्थ और सम्पूर्ण व्यक्तित्व को मेरे परिवार का नमन और मेरा चरण वंदन .
सदैव आपका . अमरीश
शर्मा अंकल से हमारा रिश्ता ऐसा है जिसे सिर्फ महसूस किया जा सकता है .
पिछले १० सालों में जो अपनापन मिला उसको शब्दों का जामा पहनाना असंभव है .
अभी भी ऐसा लगता है की वह यहीं पर हैं , कभी भी सीढ़ियों से आते दिख जायेंगे .
पर अफ़सोस ' हाँ जी ' की वह आवाज़ अब नहीं सुनाई देगी .
दिन के हर प्रहर में ; उनका पडोसी होने की नाते मेरे परिवार का एक अघोषित दखल रहता था .
सुबह की सैर , संडे सुबह की चाय , हफ्ते में तीन से चार बार रात १० बजे वाली मुलाकात का एक तरह से नियम ही बन गया था .
अब दिल पर पत्थर रख कर स्वीकार करना पड़ेगा की एक देवता स्वरुप इंसान हमारे बीच में से सदा की लिए चला गया है .
एक निर्वात (अंग्रेजी में Vaccuum) सारे जीवन बना रहेगा . ठीक वैसा ही झकझोर देने वाला निर्वात जो पहली बार मुझे तब महसूस हुआ था जब मेरे पिता जी का २००१ में स्वर्गवास हुआ था .
दोनों घटनाओं में दुःख तो एक सरीके का है और जो सदैव दिल की गहराईयों में कहीं दबा और छुपा ही रहेगा .
पर ; जो यादें और जो खुशियां हमने साथ रह कर जुटाई हैं ; वह हम सब को सम्बल देती रहेंगी .
रेमंड फैब्रिक की पंच लाइन है ' अ परफेक्ट मैन' . शर्मा अंकल भी एक परफेक्ट मैन थे .
अनुराग की शब्दों को चुरा कर लिख रहा हूँ : ' हर उम्र का व्यक्ति २ साल से ८० साल तक ; उनका दोस्त था' .
आज वह भौतिक रूप में नहीं हैं पर हमेशा हमारी यादों में रहेंगे . और हाँ जी , आपको याद करते ही आपकी मीठी यादों की मुस्कराहट हर चेहरे पर आती रहेगी .
एक निस्वार्थ और सम्पूर्ण व्यक्तित्व को मेरे परिवार का नमन और मेरा चरण वंदन .
सदैव आपका . अमरीश