Madhu
Pathak
gedeactivereerd
श्रीमती मधु पाठक, धर्मपत्नी श्री रामवीर प्रसाद पाठक एक धर्म परायण, सामाजिक, सरल, पतिव्रता, मिलनसार एवं संतोषी व्यक्तित्व की महिला थीं । उनका जन्म उत्तर प्रदेश, जिला हाथरस के ग्राम तोछीगढ़ में सन 1949 चैत्र मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को हुआ था।
उनकी प्रारंभिक शिक्षा गांव में ही हुई। बचपन में ही उनके पिताजी का स्वर्गवास हो गया अतः उनका लालन-पालन उनकी माताजी एवं बड़े भाई साहब ने किया। मधु पाठक जी बचपन से ही धार्मिक एवं मिलनसार व्यक्तित्व की बालिका थीं। मधु पाठक जी का विवाह श्री रामवीर प्रसाद पाठक जी से 19 वर्ष की आयु में हुआ था। उनके परिवार में पति, दो पुत्र / पुत्रवधु , दो पुत्रियां / दामाद, तीन पौत्र, चार धेवते / धेवतियाँ एवं अन्य परिवार जन हैं।
उनका जीवन बहुत संघर्षपूर्ण रहा। उनके विवाह के कुछ वर्ष बाद उनकी सासू मां का निधन हो गया। घर की सबसे बड़ी बहू होने के नाते उन्होंने अपनी ननद , देवर, देवरानी को अपने बच्चों की तरह प्रेम पूर्वक पालपोस कर बड़ा किया और पूरे संयुक्त परिवार को प्रेम के एक सूत्र में बांध कर रखा। उनका यह प्रेम केवल उनके परिवार तक ही सीमित नहीं था बल्कि उनकी प्रेम की यह पावन सुगंध दूर-दूर तक संबंधियों में जाकर उनको निरंतर प्रफुल्लित करती रहती थी।
<br>
उनकी दिनचर्या भी उनके व्यक्तित्व को दर्शाती थी। घर में सबसे पहले उठकर पारिवारिक जिम्मेदारियां को पूरा करने के बाद, नित्य पूजा करना, राम चरित मानस का पाठ करना , मंदिर जाना एवं संध्या आरती करना उनकी दिनचर्या का अभिन्य अंग था । बिना पूजा पाठ किए, वह अन्न का एक दाना भी ग्रहण नहीं करती थीं। तरह-तरह के पर्वों, अवसरों पर उपवास रखना और विशेष कर एकादशी व्रत रखना उनका विशेष प्रेम था। जहां उनके पति जीवकोपार्जन में व्यस्त रहते थे वह घर की सारी जिम्मेदारियां स्वं संभालती थीं । वह गृह कार्यों जैसे कढ़ाई, बुनाई और विशेषकर पाक विद्या में निपुण थी। उनके बनाए हुए सादा भोजन को भी लोग व्यंजनों की तरह खाकर उंगली चाट चाट कर बरसों तक याद करते रहते थे।
उनकी प्रभु के प्रति अटूट आस्था थी। उनकी भक्ति की शक्ति एवं पति की अविरल मेहनत से परिवार ने सामाजिक, धार्मिक एवं आर्थिक रूप से समाज में एक सम्मानीय स्थिति बनाई। प्रभु के आशीर्वाद एवं उनके संस्कार से पूरा परिवार शुद्ध शाकाहारी, सादा जीवन, संतोष पूर्वक व्यतीत करता है। उनके जीवन के कुछ अनुसरणीय बिंदु इस प्रकार हैं जिनका उन्होंने जीवन पर्यंत अनुपालन किया :
1 रामचरितमानस का दैनिक पाठ करें
2 गौ एवं गोवंश सेवा में निरंतर लगे रहें
3 आमदनी के अनुसार दान अवश्य करें
उनको तीर्थाटन करना बहुत अच्छा लगता था और प्रभु कृपा से वह सपरिवार रामेश्वरम धाम, श्री द्वारकाधीश धाम , जगन्नाथ पुरी धाम एवं काशी विश्वनाथ धाम एवं अन्य तीर्थ स्थलों के दर्शन सपरिवार कर पाईं। उनको गंगा स्नान करने में विशेष आनंद आता था।
लगभग 2 साल पूर्व उनको श्वास संबंधी बीमारी का पता चला जिसका उन्होंने पूरी हिम्मत से सामना किया। लेकिन होइहि सोइ जो राम रचि राखा ...
01 अगस्त 2024 एकादशी के दिन , दिन में सभी बंधु बांधवों से प्रेम सहित मिलकर एवं आशीर्वाद देकर, रात्रि २:14 पर सभी पुत्र, पुत्री, पुत्रवधू के सानिध्य व आलिंगन के साथ, रामधुन सुनकर एवं श्री राम के चित्र के दर्शन करते हुए इस जीवन की यात्रा पूरी करी ।
उनके जीवन के कुछ सतगुण यदि हम लोग अपने जीवन में अनुसरण कर लें तो यह उनके प्रति एक सच्ची भावपूर्ण श्रद्धांजलि होगी ! प्रभु उनकी आत्मा को शांति प्रदान करें एवं अपने श्री चरणों में स्थान प्रदान करें !
ॐ शांति। ॐ शांति। ॐ शांति।
Meer...
Minder...